Shardiya Navratri 2020
नवरात्रि पूजन
*घटस्थापना मुहूर्त (दिल्ली)
*घटस्थापना मुहूर्त : 06:25 से 10:15
*अवधि : 3 घंटे 40 मिनट*
शारदीय नवरात्र 2020
- 17 अक्तूबर, शनिवार, प्रथम नवरात्र, मां शैलपुत्री
- 18 अक्तूबर, रविवार, द्वितीया नवरात्र ब्रह्मचारिणी
- 19 अक्तूबर सोमवार, तृतीया नवरात्र चंद्रघंटा
- 20 अक्तूबर मंगलवार, चतुर्थ नवरात्र कूष्मांडा
- 21 अक्तूबर बुधवार, पंचम नवरात्र स्कंदमाता
- 22 अक्तूबर गुरुवार, षष्ठ नवरात्र कात्यायनी
- 23 अक्तूबर शुक्रवार, सप्तम नवरात्र कालरात्रि
- 24 अक्तू० शनिवार, अष्टम नवरात्र महागौरी,दुर्गाष्टमी
- 25 अक्तू० रविवार, नवां नवरात्र सिद्धिदात्री, महानवमी/दशहरा ।
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत (वांसतीय नवरात्रे-चैत्रमास- मार्च/अप्रैल) और शरद ऋतु की शुरुआत, (शारदीय नवरात्रे- अश्विनमास-सित०,अक्तू०) जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। ये दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चांद्रमास के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम,तथा रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से भी पहले, प्रागैतिहासिक काल से की जाती है।
शरद् ऋतु मे किये जाने वाले देवीपूजन यानि शारदीय नवरात्रे (अश्विनमास-सित०,अक्तू०) को "अकाल पूजा" तथा वांसतीय नवरात्रे (चैत्रमास- मार्च/अप्रैल) को "सकाल" पूजा कहते हैं ।
शरद् ऋतु में "देवरात्रि" होती है, इसलिए इन्हें "अकाल पूजा" कहते हैं, तंत्र साधना की दृष्टि से यह समय बहुत महत्वपूर्ण होता है । इस देवरात्रि मे देवी को जागृत करना पड़ता है ।
नवरात्रि का अर्थ है, नई रात अर्थात रात्रि में हो रहा परिवर्तन, यानि जलवायु तथा ऋतु मे हो रहा परिवर्तन । पृथ्वी के घूमने की वजह से ये परिवर्तन होते हैं, ऐसे परिवर्तन को सहने के लिए ही व्रत किए जाते हैं, और यह व्रत देवी के निमित्त इसलिए किऐ जाते हैं क्योंकि देवी का एक नाम "कालरात्रि" भी है और "कालरात्रि" यानि कालपुरूष मे परिवर्तन करने वाली अर्थात देवी ही "प्रकृति की भी अधिष्ठात्री देवी" है ।
अश्विन नवरात्र वर्ष 2020 मे दिनांक '17 अक्तूबर, शनिवार से प्रांरभ होकर '25 अक्तूबर रविवार (महानवमी ) तक चलेगे । दुर्गाष्टमी 23 अक्तूबर को, तथा 25 अक्तूबर को नवमी तथा दशहरा मनाया जायेगा ।
घटस्थापना मुहूर्त
नवरात्र पूजन का सीधा तथा सामान्य सिद्वांत सूर्योदय से 10 घटी ( यानि 4 घंटे के बीच मे ) घटस्थापना यानि पूजा आंरभ करने का होता है, इसमे शुभ लग्न, शुभचौघडिया, अन्य ग्रह योग देखकर मुहूर्त तय किया जाता है । इस वर्ष जो अधिक सही मुहूर्त है उसके अनुसार *प्रातः 06:23 am से 10:11 am के बीच मे घटस्थापना अर्थात पूजा आंरभ करे ।*
यदि निर्दिष्ट समय पर घटस्थापना संभव न हो पाये तो दोपहर 11:48 am से 12:35 pm तक अभिजीत मुर्हूत है, जोकि अत्यधिक शुभ है इसमे पूजन शुरु किया जा सकता है ।
शास्त्रानुसार नवरात्रि पूजन तथा व्रत की अनेक विधियां कही गई है, अपनी-2 मान्यता अनुसार इनमे से किसी भी विधि से नवरात्रे पूजा की जा सकती है
नवरात्रि पूजन तथा व्रत की विभिन्न आठ विधियाँ
नवरात्र पूजन विधि-1( दुर्गा सप्तशती )
नवरात्र पूजन के विभिन्न तरीके है, इनमे जो सबसे अधिक प्रचलित है वह 'दुर्गा सप्तशती' पाठ के साथ व्रत रखना।
'दुर्गा सप्तशती' एक धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है। यह मार्कण्डेय पुराण का अंश है। इसमें ७०० श्लोक होने के कारण इसे 'दुर्गा सप्तशती' भी कहते हैं। इसमें सृष्टि की प्रतीकात्मक व्याख्या की गई है। जगत की सम्पूर्ण शक्तियों के दो रूप माने गये है - संचित और क्रियात्मक। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ किया जाता है।
इस रचना का विशेष संदेश है कि विकास-विरोधी दुष्ट अतिवादी शक्तियों को सारे सभ्य लोगों कि सम्मिलित शक्ति "सर्वदेवशरीजम" ही परास्त कर सकती है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इस प्रकार आर्यशक्ति अजेय है। इसको भेदन दुष्कर है। इसलिए यह 'दुर्गा' है।
इसके लिए दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्याय (इकठ्ठे) का प्रतिदिन पाठ करे ।
यदि ये तेरह अध्याय प्रतिदिन न हो पाये तो आप अष्टमी या नवमी जो भी पूजते हो, पहले नवरात्रे से लेकर अपने कंजक बिठाने के दिन तक उन दिनो मे तेरह अध्याय को निम्नलिखित प्रकार से बांटकर रोजाना पाठ करे ।
परंतु दोनो मे से किसी भी विधि से, पाठ शुरु करने से पहले प्रतिदिन आत्मशुद्धि करके संकल्प ले, तत्पश्चात क्षमतानुसार पंचोपचार पूजन या दशोपचार पूजन अथवा षोडशोपचार पूजन करके अर्गला, कीलक, तथा चण्डी कवच का पाठ अवश्य करे, फिर इसके उपरांत निम्नलिखित प्रकार से सातो दिन अध्याय का पाठ करना चाहिए ।
अध्याय पाठ का क्रम:
१. पहले दिन एक अध्याय - प्रथम अध्याय
२. दूसरे दिन दो अध्याय -(द्वितीय तथा तृतीय अध्याय)
३. तीसरे दिन एक अध्याय- चतुर्थ अध्याय
४. चौथे दिन चार अध्याय- पंचमी, षष्ठ, सप्तम, अष्टम अध्याय ।
५. पाँचवे दिन दो अध्याय- नवम तथा दशम अध्याय
६. छठवें दिन एक अध्याय- ग्यारहवां अध्याय ।
७. सातवें दिन दो अध्याय- द्वादश तथा त्रयोदश अध्याय ।
इस प्रकार से सात दिनों में तेरहों अध्यायों का पाठ किया जाता है ।
तत्पश्चात माता से क्षमा प्रार्थना करें - क्षमा प्रार्थना का स्तोत्र भी दुर्गा सप्तशती में ही वर्णित है ।
प्रतिदिन पाठ करने के बाद, तथा सन्ध्या काल को भी अम्बे जी की आरती अवश्य करे ।
पूजा विधि-2:-( नवदुर्गा पूजन )
नवरात्रो की पूजन की अगली विधि नवदुर्गा पूजन यानि नौ दिनो मे प्रत्येक दिन की अलग-२ देवी होती है, उन देवियों के दिनो के अनुसार उनके मंत्रो द्वारा उनकी उपासना करना और अंतिम दिन हवन करके मंत्रो के दशांश की आहुति देकर कंजक बिठाना ।
*(नवरात्रे पूजनविधि लेख के तुरंत बाद नवदुर्गा पर लेख मे नवदुर्गाओ पर विस्तृत लेख शुरू होगा, उक्त लेखो मे सभी नौ देवियों के मंत्र तथा स्तोत्र इत्यादि प्रस्तुत होगे)*
नवरात्रो की नौ देवियो का महामंत्र
*प्रथमं शैलपुत्री, द्वितियं ब्रह्मचारिणी, तृृतयं चन्द्रघण्टेति, कूष्मांडेति चतुर्थकम, पंचमम स्कंदमातेती, षष्ठम् कात्यायनी च , सप्तमं कालरात्रिती, महागौरिती चाष्टमम् , नवमं सिद्विदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:।।*
इस प्रकार अपनी अभीष्ट की सिद्वि के लिए आप इन नवरात्रो के शुभ अवसर का लाभ इन मंत्रो के द्वारा उठा सकते है ।
पूजा विधि-3:-( आदि शक्ति पूजन )
दूसरी विधि मे *नवरात्रो के नौ दिनो मे महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली की साधना* परंतु ये उपासना किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन मे ही की जानी चाहिये ।
यहाँ पर इन तीनों देवियो के पूजन की सरल तथा वैदिक मंत्र तथा विधि:-
- नवरात्रे के पहले तीन दिन धरती से 'तमोगुण' को कम करने के लिए "तमोगुणी महाकाली" की पूजा करते हैं ।
*काली गायत्री मंत्र*
*ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि ।
*तन्नः कालीः प्रचोदयात् ॥*
- नवरात्रे के अगले तीन दिन यानि चौथे, पांचवे तथा छठे नवरात्रे सत्वगुण बढाने के लिए महालक्ष्मी की आराधना की जाती है ।
*लक्ष्मी गायत्री मंत्र*
*ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि ।*
* तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥*
- नवरात्रे के अगले तीन दिन यानि सातवें, आठवें तथा नवे नवरात्रे को सत्वगुणो को तीव्र करने हेतू सत्वगुणी महासरस्वती की पूजा करते हैं ।
*सरस्वती गायत्री मंत्र*
*ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि ।*
*तन्नो वाणी प्रचोदयात् ॥*
पूजा विधि-4:-(दसमहाविद्या उपासना)
नवरात्रो के दिनो मे दसमहाविद्या की उपासना करे, परंतु 'दसमहाविद्या उपासना" को केवल योग्य गुरू के मार्ग दर्शन मे करना चाहिए ।
पूजा विधि-5:-( निर्वाण मंत्र)
मां दुर्गा के निर्वाण मंत्र का सवा लाख की संख्या मे जाप स्वयं करके, या किन्हीं सुयोग्य ब्राह्मणो द्वारा करवाकर अंतिम दिन हवन करके उसकी पूर्ति करना
*निर्वाणमंत्र :-*
*ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॥*
पूजा विधि-6:-(नवग्रह अनुष्ठान)
तीसरी विधि मे नवरात्रो के परम शक्तिशाली दिनो मे नवग्रहो की प्रसन्नता प्राप्तिी हेतू, ग्रहो का प्रकोप हटाकर कृृपा पाने हेतू या नवग्रह शांति हेतू विशेष पूजा की जाती है, इस पूजा मे नवरात्रो के प्रत्येक दिन केवल एक ग्रह की पूजा करते हुए नौ दिनो मे, नौ के नौ ग्रहो की पूजा निम्नलिखित मंत्रो द्वारा तथा निश्चित दिन मे की जाती हेै, दिवस तथा मंत्र तालिका इस प्रकार है:-
1. पहला नवरात्र - मंगल ग्रह पूजा - मंत्र
ऊॅ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
2. दूसरा नवरात्र - राहू ग्रह पूजा
ऊॅ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
3. तीसरा नवरात्र - वृृहस्पति ग्रह पूजा
ऊॅ ग्रां ग्रीं ग्रौ सः गुरवे नमः
4. चौथा नवरात्र - शनि ग्रह पूजा
ऊॅ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः
5. पंचम नवरात्र - बुध ग्रह पूजा
ऊॅ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाये नमः
6. छठा नवरात्र - केतू ग्रह पूजा
ऊॅ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
7. सातवां नवरात्र - शुक्र ग्रह पूजा
ऊॅ द्रां द्रीं द्रौ सः शुक्राय नमः
8. आठवां नवरात्र - सूर्य ग्रह पूजा -
ऊॅ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
9. नवां नवरात्र - चन्द्र ग्रह पूजा -
ऊॅ श्रां श्रीं श्रौ सः चन्द्रमसे नमः
परंतु नवग्रहो की पूजा से पहले प्रतिदिन माता की पूजा अवश्य की जायेगी, पहले ही दिन एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उसपर नवग्रह का यंत्र स्थापित करे, प्रत्येक दिन के अनुसार ग्रह का मंत्र जाप करे, अंतिम दिन कंजक बिठाने से पहले जपे गये मंत्रो की संख्या के दसवे हिस्से की हवन मे आहुति दे। इस प्रकार ये नवग्रह अनुष्ठान नवरात्रो मे करने से ग्रह जनित दोष समाप्त होते है, साधक सुख समृृद्वि और ऐश्वर्य को प्राप्त करता हुआ मनोवांछित फल प्राप्त करता है ।
7. नवरात्रो मे नवग्रह की उपासना या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतू विभिन्न मंत्रो के जाप द्वारा मनोरथो को पूर्ण करना ।
दुर्गा गायत्री:-
*ॐ कात्यायनायै विद्महे,कन्याकुमारी च धीमहि ।*
*तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥*
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